शनिवार, 19 अगस्त 2017

ब्यावर शहर | Beawar City


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सर्वधर्म समभाव के प्रणेता


ब्यावर के संस्थापकः कर्नल चाल्र्स जार्ज डिक्सन


जन्म 30 जून सन् 1795 में स्काटलैण्ड में


स्र्वगवास 25 जून सन् 1857 में ब्यावर में


1 फरवरी 1836 में अजमेरी गेट पर ब्यावर शहर की नींव रक्खी


मेरवाड़ा के सुपरिन्टेण्डेन्ट 1836 से 1842 तक






ब्यावर के संस्थापक


कर्नल चाल्र्स जार्ज डिक्सन



1795 - 1857



रचनाकारः MEHBOOB ALI KATH




कर्नल चार्ल्‍स जार्ज डिक्सन का जन्म ग्रेटब्रिटेन के स्काटलैंण्ड देश में 30 जून सन् 1795 ई. को हुआ था। आप 17 साल की उम्र में हिन्दुस्तान में आये। आप भी कर्नल जेम्स टाड व कर्नल हैनरी हाॅल की भाॅंति बॅंगाल आर्टिलरी रेजीमेण्ट के फौजी अधिकारी थे। छ साल तक कलकत्ता में रहने के पश्चात् आप नसीराबाद छावनी आये जहाॅं आप तीन साल तक रहे। तत्पश्चात् आपको अजमेर में मैगजीन का प्रभारी बना दिया जहाँ आप 14 साल तक रहे।


40 साल की उम्र में ब्यावर की फौजी छावनी के सदर कर्नल हैनरी हाॅल के इस्तीफा देने पर आपको उनके स्थान पर ब्यावर फौजी छावनी के सुपरिन्टेण्डेण्ट के पद पर नियुक्त किया गया।




मेम साहिबा की हवेली



ब्यावर के इतिहास से भलीभाँति स्पष्ट है कि यह प्रदेश भयानक जंगल था जहाँ पहाड़ी मेर जाति निवास करती थी। उनका मुख्य कार्य लूटपाट करना था। अरावली की छोटी बड़ी घनी घुमावदार पहाडियों के पथरीले प्रदेश के साथ साथ कहीं कहीं छोटे-बडे़ मैदानी क्षेत्र भी अवस्थित है।


अतएव कर्नल डिक्सन ने सोचा कि इस जाति को बल प्रयोग से नहीं जीता जा सकता। अपित् पे््मभाव से ही इन पर नियन्त्रण किया जाय। यह सोचकर डिक्सन ने मेर जाति की लड़की से ही, चाँदबीबी से निकाह कर लिया। बडे़ पे्रम से इस जाति के लोगों को समझाया कि लूटपाट करना अच्छा काम नहीं है। मेहनत, परिश्रम करके निर्वाह करना ही सच्ची जिन्दगी है।


यह सोचकर इस प्रदेश की पृष्ट भूमि चरागाह है, भेड़-बकरी पशु पालन का मुख्य काम इस क्षेत्र में है। अतः ब्यावर की फौजी छावनी के पथरीले जंगल को साफ कर यहाॅं पर एक नागरिक बस्ती को आबाद कर दिया जाय।



डिक्सन की मजार





अतः इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु डिक्सन ने अपने अधिकारी से इस कार्य को मूर्तरूप देने हेतु, अनुमति प्राप्त कर, अपनी फौज से जंगल साफ कराकर उबड़-खाबड़ जमीन को समतल कराकर 10 जुलाई सन् 1835 ई. को गजट में नागरीक बस्ती के निर्माण करने की अधिसूचना जारी की। इस आशय की एक एक प्रतिलिपि इस क्षेत्र के आस पास के मारवाड़, मेवाड़, ढूँढार, शेखावटी के तमाम गाँवों को भिजवा दी। परिणामत् 1 फरवरी सन् 1836 को अजमेरी गेट पर डिक्सन ने केकड़ी, देवली के पण्डित शिवलाल श्रीलाल से हिन्दू सनातन विधि से प्रातः 10 बजे ब्यावर नगर की नींव रक्खी अर्थात् पूजन के साथ नींव का पत्थर रक्खा। इस प्रकार ब्यावर नगर का निर्माण हुआ।


डिक्सन सर्वधर्म समभाव के मूर्तरूप थे उन्होनें कभी भी अपनी प्रजा में किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं किया। आपने 22 साल तक मेरवाड़ा पर हुकुमत की। सन् 1836-1842 तक मेरवाड़ा सुपरिन्टेन्डेन्ट रहे। 1842-1852 तक मेरवाड़ा और अजमेर के संयुक्त सुपरिन्टेन्डेण्ट रहे और 1852-1857 की 25 जून मृत्यु पर्यन्त तक मेरवाड़ा और अजमेर दोनों क्षेत्रों के संयुक्त सुपरिन्टेन्डेण्ट व कमिश्नर के रूप में कार्य किया।






चाँद बीबी का मकबरा



उनके शासन में प्रजा बहुत खुश थी ओर अपने राजा केा तह दिल से चाहती थी। राजा भी अपनी प्रजा के सुख-दुख का पूरा ख्याल रखते थे।


उन्होंने अपने शासन काल में नागरिकों की सुरक्षा हेतु ब्यावर नगर को क्रोस की आकृति प्रदान कर चार बडे़ 32 फीट ऊँचे कलात्मक चारों दिशाओं में दरवाजों का मय 32 बुर्जियों के व एक सुन्दर 21 फीट ऊॅंची, 6 फीट चैडी, यानी मोटी और 10569 फीट लम्बी मजबूत, सुन्दर, कलात्मक कॅंगूरेदार रक्षण दीवार इन दरवाजों और बुर्जियों को जोड़ती हुई बनाई। इस कार्य में पीली मिट्टी और मोटे पत्थर काम में लाये तथा लिपाई यानी प्लास्टर चूने से करवाया। चाहर दीवारी के भीतर क्रोस की पट्टियोें को जोड़ते मध्य भाग में चैपाटी से उसी आकृति के माप के अनुरूप चारों दिशाओं में चार 70 फिट चैड़ी सड़क बनाकर उसके दोनों और लगभग 500 दुकानों के साथ चार मुख्य बाजार बनाये। इन बाजार में मुख्य चैपाटी से चारों दिशाओं में बाजारों में 10 चैपाटी बनाकर अजमेरी गेट के दाहिनी और से चार दीवारी के भीतर लगभग छ सो आयताकार प्लाटों यानी नोहरों में, 21 कालोनिया, जाति के आधार पर यानी मोहल्लों का निर्माण कराया।


प्रत्येक आयताकर मोहल्ले में एक चैराहा चार सड़को को जोड़ता हुआ बनाया जिसे बाजार के चैराहे से जोड़ा। इस प्रकार इक्कीस जातियों के 1158 परिवारों को इन मोहल्लों में पट्टे देकर बसाया। इस प्रकार 32 चैराहों, 128 सड़क व 600 नोहरों के साथ ब्यावर नगर के चारमुख्य बाजारों में 500 दुकानों के साथ ब्यावर नगर के व्यापार का शुभारम्भ किया। देखते देखते ब्यावर नगर राजपूताना ही नहीं अपित् भारत का ऊन, रूई कपास और सर्राफा जिन्स का एक बड़ा तिजारती केन्द्र बन गया जिसने इन व्यापार में पूरे विश्व में शोहरत हासिल की। चारों दरवाजों के अन्दर सुरक्षा हेतु चार पुलिस चैकी बनाई। पुलिस थाना और ओक्ट्रोइ इमारत बाजार के मुख्य चैराहे पर बनाई।
MEHBOOB ALI KATHAT

Teja Mela Beawar | तेजा मैला ब्यावर | Tejaji Ka Mela


     तेजा मैला ब्यावर | Teja Mela Beawar

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  1. भारत वर्ष दुनिया में ऐसा देश है जहां दुनिया भर के लोग अपने-अपने धर्म का स्वतंत्रय रूप से पालन करते हुए शांति, भाईचारे, सहआस्तित्व के साथ रहते हैं। ऐसा अनोखा उदारहरण दुनियां में भारत के सिवाय और कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में भिन्न-भिन्न प्रदेशों में भौगोलिक स्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृतियों अवस्थित है एक ‘ब्यावर’ नगर, जो श्री सीमेंट उद्योग, डी.एल.एफ. प्रीमियम सीमेंट, ऊन व तिल पपड़ी, बीड़ी, तंबाकू, कुटीर उद्योगों के साथ-साथ दो प्रसिद्ध मेंलों के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है। एक वीर तेजाजी का मेला जो प्रतिवर्ष भाद्रप्रद शुक्ल की नवमी की रात्रि से एकादशी की रात्रि तक भरता है और दूसरा है गुलाल की बादशाह मेला जो प्रतिवर्ष होली के तीसरे दिन सांयकाल छह घंटे के लिए 5 बजे से 11 बजे तक रहता हैं ।



2.   तेजा मेला-तेजाजी के मंदिर व तेजा चैक से सुभाष उद्यान में, स्थानीय नगरीय प्रशासन के द्धारा आयेजित किया जाता है । इस मेले में मध्य राजस्थान की मूल ग्रामीण संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है, जहां असंख्य ग्रामीण आसपास के श्रेत्रों से भव्य मेले का आनंद प्राप्त करते हैं । प्रशासन के द्धारा इस मेले का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से आकर कागज की लुगदी से संुदर-संुदर कलात्मक बनाए नऐ खिलौनों की दुकानें लगाई जाती हैं। मिट्टी के भिन्न-भिन्न प्रकार के घर में काम आने वाले पकाए हुए बर्तनों की दुकानें लगाई जाती हैं। भव्य रोशनी की सुचारू व्यवस्था की जाती है। नारियल की दुकानें, चाट-पकोड़ी की दुकानों के साथ-साथ विसायती के सामान की बहुत सी दुकानें लगाई जाती है। शहरी प्रशासन के द्वारा कई तरह के खेल प्रतिस्पद्र्धाऐं सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे जाते हैं।

                

3. कई प्रकार के झूले-चकरियां, बच्चों की रेल गाडि़यां, कई प्रकार के जादू के खेल इत्यादि लगाए जाते हैं । सफाई की, पीने के ठण्डे व मीठे पानी की अनेक प्याऊ व मेलार्थियों के सुस्ताने व ठहरने के लिए अनेक स्थानों पर टेंट लगाए जाते हैं । ग्रामीण-लोग अपनी रंगीन पोशाकों में बडे़-बड़े रेश्मी झण्डे टेªक्अरों में लगाकर बैण्ड बाजों, ढोल नगाड़ों के साथ तेजाजी महाराज की जोत के साथ अलग-अलग टोलियों में तेजाजी के मंदिर पर नाचते गाते जुलूस के रूप में तेजा दशमी के रोज दिन भर आते रहते हैं जो तेजाजी के दरबार में मन्नत मंागते हैं और जिनकी मन्नत पूरी होती है वे मन्नत चढ़ाने आते हैं। प्रत्येक वर्ष भादप्रद शुक्ला नवमी की रात्री के जागरण के साथ यह मेला भादप्रद शुक्ला एकादशी रात्री तक यानि तीन दिन तक लगातार आयोजित किया जाता है। ब्यावर शहर राष्ट्रय राजमार्ग संख्या 8 पर अजमेर से दखिण-पश्चिम में 54 किलोमीटर पर स्थित हैं। दिल्ली-अहमदाबाद की ब्राॅड-गेज रेलवे लाइन का मध्यवर्ती स्टेशन है। अरावली पर्वत श्रंृखलाओं से घिरा हुआ 444 फीट की उुंचाई पर, पठार पर 5 किलोमीटर की गोलाकार परिधि वाली घाटी में बसा हुआ एक सुंदर, खुशनुमा शहर है। यह जिला मुख्यालय के समान समस्त सुविधाएं लिए हुए हैं। 




4. मेले में जाट लोक देवता त्यागी, निर्भीक, वचनों के पक्के पर सेवी वीर तेजाजी महाराज के थान यानि मंदिर पर चढ़ाने के लिए कई रंगों में रेशमी पट्टी में गोटा किनारी से तैयार किए गए बड़े-बड़े झण्डे देश के दूर-दूर स्थानों से उनके अनुयायियों द्वारा जो विशेष ग्रामीण व श्रमिक वर्ग होते हैं, के द्वारा जुलूस के रूप में गाते-बजाते ढोल, बैंड, नगाड़ों के साथ लाए जाते हैं । जैसे जयपुर से जयपुर स्पिनिंग मिल्स, किशनगढ़ से आदित्य मिल्स, भीलवाड़ा सूटिंग्स, विजयनगर से, पाली से उम्मेद मिल्स, गुलाबपुरा से मयूर सूटिंग्स व ब्यावर अजमेर के लगभग सभी औद्योगिक इकाइयों द्वारा झंडे तेजाजी के थान पर लाए जाते हैं । मेलाथ्र्।ियों के ठहरने के लिए यहां पर सराय, धर्मशालाएं, होटल, रेस्टोरेंट इत्यादि का सुचारू प्रबंध है ।

: - MEHBOOB ALI KATHAT

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